कहरा : 1 : 16
लीन्ह बुलाय बात नहिं पुछै , केवट गर्भ तन बोले हो !
शब्द अर्थ :
लीन्ह बुलाय = निमंत्रण देकर बुलाना , आदर से बात करना ! बात नहिं पुछै = उत्तर न देना ! केवट = मछीमार ! तन = शरीर ! तन बोले = हरकते !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे बताते है की मुलभारतिय हिन्दूधर्म के भोले भाले लोग विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के होमहवन , वैदिक निरर्थक बडबड , सोमरस , गाय ,बैल घोडे आदी की बली के बाद परोसा गया मांसाहार , दारू , मेनका ऊर्वशी का नाच गाना , वैदिक स्त्रिया जो मंदिर मे देवदासी बनकर मुलभारतिय हिन्दूधर्मी लोगोका दिल बहलाती थी इन सभी को भूलकर कुछ लोगोने वैदिक ब्राह्मणधर्म को अपनाकर ब्राहमिनो के निचे क्षत्रिय , वैश्य , शुद आदी वर्ण और मनुस्मृती का कानुन स्विकारा है पर आज वो सब दुखी है अफसोश कर रहे है क्यू की विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म मे समता , भाईचार नही , शोषण है जातिवाद वर्णवाद है छुवाछुत अस्पृष्यता है उनहे अब लगता है वे मछली जैसे वैदिक ब्राह्मण के जाल मे फस गये है और गुलामी ज़िल्लत अपमान के शिवाय और कोई स्थान नही है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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