पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर 2 : 25
चाचर : 2 : 25
बिनु पानी नर बूड़हीं , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
बिनु पानी = पानी के शिवाय , जाहाँ पानी भी नही ! ! नर = मानव ! बूड़हीं = डुबना , मरना !
मन बौरा हो = पगला गया है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों लोग केवल पानी मे ड़ूब कर ही नही मरते एसे अनेक प्रकार है ज़िससे आत्म हत्या करते है जैसे अधर्म का पलान कर पाप के खाई में गीर जाना ! माया मोह इच्छा तृष्णा वासना कामना लालच अहंकार आदी अनेक प्रकार है ज़हाँ मानव डूबता है दारू जुवा नशा वेश्या चौरी झूठ एसे कितने ही दूर्गुण है ज़हाँ अग्यानी मानव डूबता है और अपना अनमोल मानव जीवान बर्बाद कर देता है , यह भी मूर्खता है पागलपन है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दुधर्म विश्वपीठ
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