Wednesday, 31 July 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 40

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ४०

#रमैनी : ४०

आदम आदि सुधि नहि पाई * मामा हवा कहां ते आई 
तब नहिं होते तुरक औ हिन्दू * माय के रुधिर पिता के बिन्दू 
तब नहिं होते गाय कसाई * तब बिसमिल्ला किन फुरमाई 
तब नहिं होते कुल और जाती * दोजख बिहिस्त कौन उतपाती 
मन मसले की सुध नहिं जाना * मति भुलान दुइ दीन बखाना 

#साखी : 

संजोगे का गुण रवै, बिजोगे का गुण जाय / 
जिभ्या स्वारथ कारने, नर किन्है बहुत उपाय // ४० //

#शब्द_अर्थ : 

आदम = ईब्राहमी ब्राह्मण धर्म का पहला मानव ! आदि = श्रृष्टि की रचना ! सुधि = ज्ञान ! मामा = पहली स्त्री , आदम की हौवा ! हवा = हव्वा ! फुरमाई = आज्ञा देना , अनुमति देना ! मन मसले = मन कल्पित , मन गढंत ! रवै = प्रगट होना! संजोग बिजोग = जुड़ना टूटना ! जाय = नस्ट होना !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है भाइयों श्रृष्टि की रचना एक अद्भुत संयोग है को चेतन राम की विलक्षण प्रतिभा की कृति है ! मानव और सभी चेतन अचेतन , दृश्य अदृश्य सब उसी की निर्मीति है ! आदम , ब्रह्मा खुद नही जानता उसकी निर्मित कैसे हूवी ओर हव्वा की उत्पत्ति कैसे हुवी ! इब्राहमी ख्रिस्ती मुस्लिम ब्राह्मण कोई धर्म नही थे तब गाय काटने के अनुमति किस ने दी पूछते है कबीर ! 

कबीर साहेब कहते है मन गढंत धर्म जीभ के चोचले पूरे करने के लिए बनाए गए है और प्राणी हत्या को जायज ठहराया गया ! होम हवन में गाय घोड़े की बली , झटका और लटका सब मानव निर्मित वेवस्था है !

चेतन राम ने न जात बनाई , ना वर्ण ना गोत्र कुल ना स्वर्ग नरक ये मती भ्रष्ट करने के लिए वैदिक ब्राह्मणधर्म और अन्य धर्म कि कारस्थानि है ! ईश्वर , परमात्मा चेतनराम की आज्ञा या अनुमति किसी अधर्म विकृति शोषण विषमता अस्पृश्यता को चेतन राम की अनुमति नाही है ! ये अनेक धर्म अधर्म मानव निमित है ! मानव धर्म तो मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा पर आधारित होना चाहिए जैसा की हमारा पुरातन सनातन आदिधर्म मूलधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म है !

#दौलतराम

Tuesday, 30 July 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 39

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ३९

#रमैनी : ३९

जिन्ह कलमा कलि माहि पढ़ाया * कुदरत खोज तिनहुं नहिं पाया 
कर्मत कर्म करे करतूता * वेद कितेब भये सब रीता 
कर्मत सो जग भौं अवतरिया * कर्मत दो निमाज को धरिया 
कर्मत सुन्नति और जनेऊ * हिन्दू तूरक न जाने भेऊ 

#साखी :

पानी पवन संजोय के, रचिया यह उतपात /
शून्यहि सुरति समोय के, कासों कहिये जात // ३९ //

#शब्द_अर्थ :

कलमा = कुरान के मूल मंत्र अल्ला पूज्यनीय ! कलि = विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म की हिन्दूधर्म में गुसाई देवि देवता मूर्ति पूजा ! कुदरत = प्रकृति ! कर्मत = कर्म रीता = खाली, व्यर्थ ! भौं = हुवा । अवतरियां = जन्म , निर्माण ! भेऊ = भेद ! पानी पवन = पंच तत्व ! संजोय = एकत्र ! उतपात = अनावश्यक ! सुरति = मन , लक्ष! शून्य = बेमतलब , निरर्थक ! जात = जात वर्ण ऊचनिच भेदभाव विचार का वैदिक ब्राह्मणधर्म ! 

#प्रज्ञा_बोध :

धर्मात्मा कबीर कहते हैं देश में तुर्की शासक हिन्दू का इसलामीकरण करना चाहते है जैसे विदेशी वैदिक ब्राह्मण हिंदू का वैदिकीकरण किया हैं !

कबीर साहेब कहते हैं मैं इन दोनो बातो को गलत मानता हुं ! विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग और विदेशी इस्लामिक तुर्की ईरानी अपने अपने धर्म के गुणगान कर हमे प्रभावित करने की कोशिश करते है पर मैं इन दोनो धर्म के लोगोंको बताना चाहता हुं तुम्हारे ये धार्मिक विचार , कार्य बेकार है ! ब्रह्मिनोके वेद और मुस्लिम का कुरान सब बेकार है , निरर्थक है न जनेऊ की जरूरत है न सुन्नत की ! ऐसे निरर्थक कर्म काण्ड , अंध श्रद्धा से जग में केवल मूर्खता और अज्ञान फैला है धर्म नही !

कबीर साहेब कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी ने तो बड़ा उत्पात मचाया है पानी से शूद्धि , जात वर्ण अस्पृश्यता विषमता ने संसार को कलुषित किया , जीना मुश्किल किया यह सब अधर्म विकृति है , धर्म नही है , धर्म केवल एक है मूलभारतीय हिन्दूधर्म जिसमे समता भाईचारा मानवता सदाचार शील की शिक्षा है कर्म है अधर्म है !

#दौलतराम

Monday, 29 July 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 38

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ३८

#रमैनी : ३८

यहि विधि कहां कहा नहि माना * मारग माहि पसारिनि ताना 
राती दिवस मिलि जोरिन तागा *ओटत कातत भरम न भागा 
भरमहि सब जग रहा समाई * भरम छोड़ी कतहू नहि जाई 
परै न पूरि दिनहु दिन छीना * तहां जाय जहां अंग बिहूना 
जो मत आदि अंत चलि आई * सो मत सब उन्ह प्रगट सुनाई 

#साखी : 

यह संदेशा फुरकै मानेहु, लीन्हेउ शीश चढ़ाय /
संतो संतोष सुख है , रहहु तो वृदय जुडाय // ३८ //

#शब्द_अर्थ : 

मारग = कल्याणकारी का धर्म , विचार ! ताना = सूत ! वाणी = जाल ! ओटत कातत = रुई की धुनाई , सूत कातना ! भरम = अज्ञान ! परै न पूरि = संतुष्ट न हुवा ! अंग बिहूना = शुन्य , अकेला होना ! आदि अंता = सनातन पुरातन एक मात्र सत्य ! फूरकै = सत्य दर्शन बताना !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं मैं कामकाजी व्यक्ति कपड़े बुनने वाला बुनकर रोज कपास की धुनाई कताई कर धागा बनाना उससे बुनकर कपड़ा बनाना यही काम दिन रात करता रहा हूं ! पर जब थोड़ा काम से मुक्त होकर एकांत में गहन चिंतन मनन किया तो पता चला विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म ढकोसला है , अधर्म है , अमानवीय विचार है विकृती है ! जात वर्ण अस्पृश्यता विषमता को मानने वाला सनातन सत्य धर्म हो नही सकता क्यू की ये विषमता अस्पृश्यता वर्ण जाति वेवस्था तो विदेशी वैदिक ब्राह्मण निर्मित है ! ये यहां की पुरातन सनातन संस्कृति नही धर्म नही ! मूलभारतीय धर्म तो समता भाईचारा मानवता सदाचार शील सिखाता है जो आदि से चला आ रहा है सिंधु हिन्दू संस्कृति से भी पहले से चला आ रहा है !

कबीर साहेब कहते हैं मैं ने फिर अपना पुराना सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी मूलभारतीय हिन्दूधर्म जो लोग करीब करीब भूल चुके थे उसे लोगोंको बताना शुरू किया !

भाईयो हमारे मूलभारतीय हिन्दूधर्म में संतोष को बहुत महत्व है संतोष नहीं तो सुख नहीं ! लालच लोभ मोह माया के कारण ही मनुष्य मन में दुखी रहता है !

वैदिक ब्राह्मणधर्म लालच मोहमाया तिरस्कार विकृति से भरा है वो मानव अहितकारक है ! दुखदायक है उसे छोड़ो अपना पुराना सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी मूलभारतीय हिन्दूधर्म का पालन करो तो संतोष और सुख मिले !

#दौलतराम

Sunday, 28 July 2024

Pavitra Bijak: Pragya Bodh : Ramaini : 37

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ३७

#रमैनी : ३७

एक सयान सयान न होई * दुसर सयान जाने कोइ 
तीसर सयान सयानहि खाई * चौथे सयान तहां ले जाई 
पंचये सयान जो जनेउ कोई * छठयें मां सब गयल बिगोई 
सतयां सयान जो जानहु भाई * लोक वेद माें देऊं देखाई 

#साखी : 

बीजक बित्त बतावै, जो बित गुप्ता होय / 
ऐसे शब्द बतावै जीवको, बुझई बिरला कोय // ३७ //

#शब्द_अर्थ : 

सयान = ज्ञान ! बीजक = गुप्त धन ,मूल तत्व का ज्ञान ग्रंथ 

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के एक के बाद एक वेद से लेकर मनुस्मृति तक सारे ज्ञान , विचार , ग्रंथ , कृतियां सब अज्ञान मूर्खता और अंधश्रद्धा फैलाने वाली है ! सब में भेदाभेद , जाति वर्ण व्यवस्था , अस्पृश्यता विषमता , लूटपाट के विविध मार्ग झूठ का आख्यान है !

एक गलती तो हो सकती है उसे सुधारा जा सकता है पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग हर आने वाले कृति कार्य विचार में अपने पहले की मूर्खता पूर्ण बातो का समर्थन करते है !

कबीर साहेब कहते है भाईयो यहां के लोगों का जो धर्म है जिसे लोकधर्म कहा जाता है , वो मूलभारतीय हिन्दू धर्म है , वही सच्चा लोक हितेशी , कल्याणकारी धर्म है जो सनातन पुरातन सिंधूहिन्दू संस्कृति काल पूर्व से लोकनाथ , आदिनाथ , पशुपतिनाथ , शिव ने समता भाईचारा मानवता सदाचार शील का धर्म बताया है वही बिजक है ! यही हमारा मूलतत्व धर्मज्ञान है जो परिपूर्ण है उसका ही आचरण करो ! वेद से लेकर मनुस्मृति तक सभी ब्राह्मणी ग्रंथ मूलभारतीय विरोधी है !  

वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग है और मूलभारतीय हिन्दू धर्म अलग है ! हमारा कल्याणकारी लोकधर्म है तो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के ब्रह्मा का विषमता वादी धर्म है !

#दौलतराम

Saturday, 27 July 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 36

Pavitra Bijak : Pragya Bodh: Ramaini : 35

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ३५

#रमैनी : ३५

पण्डित भूले पढ़ी गुनि वेदा * आप अपन जानु न भेदा 
संझा तर्पण औ शट कर्मा * ई बहु रुप करें अस धर्मा 
गायत्री युग चारि पढ़ाई * पूछहु जाय मुक्ति किन पाईं 
और के छिये लेत हो छींचा * तुम सो कहहु कौन है नीचा 
ई गुण गर्व करो अधिकाई * अधिके गर्व न होय भलाई
जासु नाम है गर्व प्रहरी * सो कस गर्वहि सकै सहारी 

#साखी : 

कुल मर्यादा खोय के, खोजीन पद निर्वान /
अंकुर बीज नशाय के नर भये, विदेही थान // ३५ //

#शब्द_अर्थ : 

आप = स्वयं ! अपन पौ = स्वरूप भाव ! संझा = सांज पूजा ! तर्पण = आहुति ! शट कर्म = वैदिक ब्राह्मण धर्म के कर्म ! ई = ये वैदिक ब्राह्मण ! बहुरूप = अनेक प्रकार ! छिये = छूने से ! छींचा = जल छिड़कना ! सहारी = सह सकना ! निर्बान = निर्वाण , मोक्ष ! अंकुर =बीज का फूलना ! अहंकार = मिथ्या अहंभाव !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते है पंडित ब्राह्मण वही पढ़ते है जो वेद मनुस्मृति आदि वैदिक धर्म ग्रंथ में लिखा है । वे पढ़त पण्डित है , ज्ञानी नही ! उन्होंने वर्ण जाति छुवाछूत , ऊंचनिच , अस्पृष्यता आदि अधर्म और विकृति को उनके धर्म ग्रंथ में लिख मारा और उसको ही रटते रहते है ! गायत्री मंत्र सांझ पूजा तर्पण अर्पण आहुति बली होम हवन जनेऊ ऐसे निरर्थक ओर मिथ्या बातो को वे धर्म मान कर उसपर गर्व कर रहे है ! इस वैदिक ब्राह्मणधर्म से किसे मोक्ष , निर्वाण प्राप्त हुवा ? किसे सुख मिला ? कबीर साहेब पूछते है ! 

कबीर साहेब कहते हैं हे विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म भाईयो अपने गलत धर्म कर्म रीती रिवाज , अमानवीय अवैज्ञानिक ब्राह्मणधर्म पर इतना अहंकार ठीक नहीं वो चेतन राम जो सब का गर्व हरण करने वाला उसे याद रखो ! खुद को अंदर से देखो कितने मैले कुचैले हो और फिर भी अहंकार से भरे हो वो तुम्हे कैसे बक्शेगा ? तुम्हे तुम्हारे दुष्कर्म के फल भुगतना ही पड़ेगा एक दिन संसार तुम पर थूकेंगे लानत भेजेंगे और तुम सह नही पावोगै ! 

#दौलतराम

Monday, 8 July 2024

Gandhi and Ambedkar

Gandhi and Ambedkar both surrendered to Brahmins and Brahminwad
Brahminwadi Gandhi proposed reservation based on castes which are part of Varn , Ambedkar agreed to reservation proposal of Gandhi based on Castes which are part of Varn system of Vedic Brahmin Dharm .
Not only that in Constitution provisions for reservation is made based on castes which are part of Varn of Vedic Dharm of Videshi Brahmins instead of Mul Bhartiyatva of Non Brahmin Native Hindu Dharmi people whose aboriginal dharm is Varnless and Casteless since Hindu / Sindhu Civilization of Native people .
What Gandhi and Ambedkar can be called favoring Caste and Varn or not ? What Gandhi and Ambedkar can be called favoring Videshi Brahmin Dharm of Ved and Bhed or not ? What Gandhi and Ambedkar can be called enemy of Satya Hindu Dharm or not ? What Gandhi and Ambedkar can be called Enemy of Native people or not ? It looks both Gandhi and Ambedkar surrendered to Brahmins , They never dared to say Videshi Vedic Brahmin Dharm is separate from Native Hindu Dharm .
They never said Videshi Brahmins Quit India ..Gandhiwad and Ambedkarwad is one and same Brahminwad.
Nativist D.D.Raut, 
President, 
Native People's Party

Our Message to Nation : Janeu Chhodo , Bharat Jodo