#रमैनी : ३९
जिन्ह कलमा कलि माहि पढ़ाया * कुदरत खोज तिनहुं नहिं पाया
कर्मत कर्म करे करतूता * वेद कितेब भये सब रीता
कर्मत सो जग भौं अवतरिया * कर्मत दो निमाज को धरिया
कर्मत सुन्नति और जनेऊ * हिन्दू तूरक न जाने भेऊ
#साखी :
पानी पवन संजोय के, रचिया यह उतपात /
शून्यहि सुरति समोय के, कासों कहिये जात // ३९ //
#शब्द_अर्थ :
कलमा = कुरान के मूल मंत्र अल्ला पूज्यनीय ! कलि = विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म की हिन्दूधर्म में गुसाई देवि देवता मूर्ति पूजा ! कुदरत = प्रकृति ! कर्मत = कर्म रीता = खाली, व्यर्थ ! भौं = हुवा । अवतरियां = जन्म , निर्माण ! भेऊ = भेद ! पानी पवन = पंच तत्व ! संजोय = एकत्र ! उतपात = अनावश्यक ! सुरति = मन , लक्ष! शून्य = बेमतलब , निरर्थक ! जात = जात वर्ण ऊचनिच भेदभाव विचार का वैदिक ब्राह्मणधर्म !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं देश में तुर्की शासक हिन्दू का इसलामीकरण करना चाहते है जैसे विदेशी वैदिक ब्राह्मण हिंदू का वैदिकीकरण किया हैं !
कबीर साहेब कहते हैं मैं इन दोनो बातो को गलत मानता हुं ! विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के लोग और विदेशी इस्लामिक तुर्की ईरानी अपने अपने धर्म के गुणगान कर हमे प्रभावित करने की कोशिश करते है पर मैं इन दोनो धर्म के लोगोंको बताना चाहता हुं तुम्हारे ये धार्मिक विचार , कार्य बेकार है ! ब्रह्मिनोके वेद और मुस्लिम का कुरान सब बेकार है , निरर्थक है न जनेऊ की जरूरत है न सुन्नत की ! ऐसे निरर्थक कर्म काण्ड , अंध श्रद्धा से जग में केवल मूर्खता और अज्ञान फैला है धर्म नही !
कबीर साहेब कहते है विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पुजारी ने तो बड़ा उत्पात मचाया है पानी से शूद्धि , जात वर्ण अस्पृश्यता विषमता ने संसार को कलुषित किया , जीना मुश्किल किया यह सब अधर्म विकृति है , धर्म नही है , धर्म केवल एक है मूलभारतीय हिन्दूधर्म जिसमे समता भाईचारा मानवता सदाचार शील की शिक्षा है कर्म है अधर्म है !
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