#रमैनी : ३५
पण्डित भूले पढ़ी गुनि वेदा * आप अपन जानु न भेदा
संझा तर्पण औ शट कर्मा * ई बहु रुप करें अस धर्मा
गायत्री युग चारि पढ़ाई * पूछहु जाय मुक्ति किन पाईं
और के छिये लेत हो छींचा * तुम सो कहहु कौन है नीचा
ई गुण गर्व करो अधिकाई * अधिके गर्व न होय भलाई
जासु नाम है गर्व प्रहरी * सो कस गर्वहि सकै सहारी
#साखी :
कुल मर्यादा खोय के, खोजीन पद निर्वान /
अंकुर बीज नशाय के नर भये, विदेही थान // ३५ //
#शब्द_अर्थ :
आप = स्वयं ! अपन पौ = स्वरूप भाव ! संझा = सांज पूजा ! तर्पण = आहुति ! शट कर्म = वैदिक ब्राह्मण धर्म के कर्म ! ई = ये वैदिक ब्राह्मण ! बहुरूप = अनेक प्रकार ! छिये = छूने से ! छींचा = जल छिड़कना ! सहारी = सह सकना ! निर्बान = निर्वाण , मोक्ष ! अंकुर =बीज का फूलना ! अहंकार = मिथ्या अहंभाव !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है पंडित ब्राह्मण वही पढ़ते है जो वेद मनुस्मृति आदि वैदिक धर्म ग्रंथ में लिखा है । वे पढ़त पण्डित है , ज्ञानी नही ! उन्होंने वर्ण जाति छुवाछूत , ऊंचनिच , अस्पृष्यता आदि अधर्म और विकृति को उनके धर्म ग्रंथ में लिख मारा और उसको ही रटते रहते है ! गायत्री मंत्र सांझ पूजा तर्पण अर्पण आहुति बली होम हवन जनेऊ ऐसे निरर्थक ओर मिथ्या बातो को वे धर्म मान कर उसपर गर्व कर रहे है ! इस वैदिक ब्राह्मणधर्म से किसे मोक्ष , निर्वाण प्राप्त हुवा ? किसे सुख मिला ? कबीर साहेब पूछते है !
कबीर साहेब कहते हैं हे विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म भाईयो अपने गलत धर्म कर्म रीती रिवाज , अमानवीय अवैज्ञानिक ब्राह्मणधर्म पर इतना अहंकार ठीक नहीं वो चेतन राम जो सब का गर्व हरण करने वाला उसे याद रखो ! खुद को अंदर से देखो कितने मैले कुचैले हो और फिर भी अहंकार से भरे हो वो तुम्हे कैसे बक्शेगा ? तुम्हे तुम्हारे दुष्कर्म के फल भुगतना ही पड़ेगा एक दिन संसार तुम पर थूकेंगे लानत भेजेंगे और तुम सह नही पावोगै !
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