Tuesday, 2 December 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Chaachar : 2 : 28

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर  : 2 : 28 

चाचर  : 2 : 28

तुम  छाड़हु  हरि  की  सेव  , समुझि  मन  बौरा  हो  !

शब्द  अर्थ  : 

तुम  = हे  मानव  ! छाड़हु  = छोड  दिया  ! हरि  = परमात्मा  चेतन  राम !  की  = उसकी  ! सेव  = संगत  ,साथ  , छाव  ! मन  बौरा  हो  = मन  पगला गया  है  , भटक रहा  है  ! 

प्रग्या  बोध ; 

परमात्मा कबीर  चाचर  के  इस  पद  में  कहते  है भाईयों  तुम  अगर  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  शिल  सदाचार भाईचारा  समता  ममता  विश्वबंधुत्व एकेश्वर तत्व  विचार  का  पाला नही  करते हो ,  न  निर्गुन  निराकार  चेतन  तत्व  अहंकार  माया  मोह  तृष्णा  हरने  वाले  परम  न्यायी  और  दयालू चेतन  राम  को  मानते  हो  तो  समझो  तुम  गलत संगत मे  हो !  तुम्हारा मन  भटक  गया  है !   तुम्हारे  मन  पर  माया  मोह  तृष्णा  वासना  का  कब्जा  हो  गया  है !   तुम  अधर्म  को  धर्म  मान बैठे  हो !   विकृती  को  संस्कृती  मान बैठे  हो  और  स्पस्ट  है  तुम  अधर्मी कुधर्मी   विदेशी  वैदिक  ब्राह्मणधर्म  के  चंगुल  मे  फस  गये हो  !  भाईयों  उस से  बाहर  निकालो  अपने  मुलभारतिय  हिन्दूधर्म  के  सुसंगत  मे  आवो  ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय  हिन्दूधर्म विश्वपीठ  , 
कल्याण , अखण्ड  हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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