पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : चाचर : 2 : 28
चाचर : 2 : 28
तुम छाड़हु हरि की सेव , समुझि मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
तुम = हे मानव ! छाड़हु = छोड दिया ! हरि = परमात्मा चेतन राम ! की = उसकी ! सेव = संगत ,साथ , छाव ! मन बौरा हो = मन पगला गया है , भटक रहा है !
प्रग्या बोध ;
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों तुम अगर मुलभारतिय हिन्दूधर्म के शिल सदाचार भाईचारा समता ममता विश्वबंधुत्व एकेश्वर तत्व विचार का पाला नही करते हो , न निर्गुन निराकार चेतन तत्व अहंकार माया मोह तृष्णा हरने वाले परम न्यायी और दयालू चेतन राम को मानते हो तो समझो तुम गलत संगत मे हो ! तुम्हारा मन भटक गया है ! तुम्हारे मन पर माया मोह तृष्णा वासना का कब्जा हो गया है ! तुम अधर्म को धर्म मान बैठे हो ! विकृती को संस्कृती मान बैठे हो और स्पस्ट है तुम अधर्मी कुधर्मी विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के चंगुल मे फस गये हो ! भाईयों उस से बाहर निकालो अपने मुलभारतिय हिन्दूधर्म के सुसंगत मे आवो !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ ,
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