चाचर : 2 : 27
कहहिं कबीर जग भर्मिया , मन बौरा हो !
शब्द अर्थ :
कहहिं कबीर = कबीर कहते है ! जग भर्मिया = जग को भ्रम मानने वाले ! मन बौरा हो = मन पगलाया है !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर चाचर के इस पद में कहते है भाईयों कुछ लोग इस संसार को , जग को , शृष्टी को असत्य और भ्रम , कल्पना कहते है पर यह शृष्टी वास्तविक है ! सत्य है ! कोई भ्रम या कल्पना नही ! राम सत्य है और राम -:मय यह शृष्टी भी सत्य है ! यह सत्य है की एक राम राजा हुवे जो मौर्य कुल नाग वंशी थे , दुसरे राम हम सब में है , तिसरे राम यह शृष्टी जग है ज़िसमे हम सब है और चवथे राम इन सब से परे ज़हाँ कबीर स्थित है ! उस स्थान की अवस्था वही समज सकता है जो शिल सदाचार का मुलभारतिय हिन्दूधर्म का समग्र पालन करता है ! वह अवस्था मोक्ष की अवस्था विशुद्ध चेतन राम की अवस्था है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दुधर्म विश्वपीठ ,
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