कहरा : 2 : 12
जतइत के धन हेरिन ललचिन , कोदइत के मन दौरा हो !
शब्द अर्थ :
जतइत = नजदिक ! धन = पैसा , धन संपत्ती ! हेरिन = नजर ! ललचिन = लालच ! कोदइत = खुद ! मन = इच्छा ! दौरा = दुर , दुसरा !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे लोगोके मन मे क्या चलता रहता है इस की चर्चा करते हुवे कहते है लोगोंकी नजर पडोसी के धन संपत्ती पर लगी रहती है ! लालची लोग सोचते है काश पडोसी की संपत्ती उसकी हो जाये पर लोग ये नही सोचते पडोसी भी एसा ही सोचता होगा !
लोगोंको लगाता है उनकी धन संपत्ती की कभी चौरी न हो , उनके पास ही सुरक्षित बनी रहे पर दुसरे की धन संपत्ती की चौरी हो जाय , क्षय हो ! ये मानसिकता गलत है अकुशल है , सब के मंगल कल्याण की नही ऐस लिये विकार भरी अधार्मिक है ! एसे विचार को त्याग देना ही धर्म है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ