कहरा : 1 : 19
जेकर हाथ पाँव कछु नाहीं , धरन लागि तेहि सोहरि हो !
शब्द अर्थ :
जेकर = ज़िसकी ! हाथ पाँव = अस्तित्व ! कछु = कुछ ! नाहीं = न होना ! धरन = मान्य करना ! सोहरि = संगत !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे संगत असंगत की बात करते हुवे कहते है भाईयों ज़िस की संगत तुम कर रहे हो ज़िस को तुम तुम्हारा दोस्त मान रहे हो वो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म और उसके पांडे पंडित पूजारी आपके दोस्त नही शत्रू है कोई भी बात उसमे नही है जो आपका कल्याण करता हो ! वैदिक ब्राह्मण धर्म ये धर्म नही अधर्म है , संस्कृती नही विकृती है ! वो धर्म ज़िसमे जाती वर्ण ऊचनीच भेदभाव विषमाता अस्पृष्यता छुवाछुत जैसे अमानविय विचार हो ज़िसका कोई हाथ पैर नही वो असभ्य विचार ब्राह्मण धर्म छोडो और आपने मुलभारतिय हिन्दूधर्म के समतावादी धर्म का पालन करो इसी मे तुम्हारी भलाई है !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
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