Saturday, 12 April 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 1 : 29

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 1 ; 29

कहरा : 1 : 29

जेहि रंग दुलहा ब्याहत आये , दुलहिनि तेहि रंग राँचे हो ! 

शब्द अर्थ : 

जेहि = जो ! रंग = तरिका , रंग ढंग ! दुलहा = चेतन राम , जीव ! ब्यहत = लगन संबंध ! दुलहिनि = प्रकृती , शृष्टी , शरीर ! राँचे = पसंद ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे जीव और प्रकृती की संगत को बताते हुवे कहते चेतन राम अर्थत जीव या आत्मा जैसे इच्छा करता है प्रकृती यानी शरीर उसी प्रकार खुद को ढ़ाल लेती है ! जीव आत्मा और प्रकृती का यह संबंध माया मोह इच्छा तृष्णा अहंकार आदी से भरा होता है जब तक जीव इनको त्याग कर बेदाग जीवान को अपनाकर इस शृष्टी मे आपनी शुद्धाता को नही प्राप्त होता माया वश जीव बार बार भिन्न भिन्न चाहत के शारीर धारण कर जीना पडता है ! एसे माया मोह ग्रस्त जीव को चेतन राम के दर्शन कैसे हो सकते है ! चेतन राम को पाना है तो निर्वांण का रास्ता शिल सदाचार का रास्ता अपनाना होगा वही कबीर साहेब ने पुनरस्थापित मुलभारतिय हिन्दूधर्म है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्ड हिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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