कहरा : 1 : 21
उथले रहहु परहु जनि गहिरे , मति हाथहु की खोबहु हो !
शब्द अर्थ :
उथले = अपरिपक्व ! रहहु = रहना ! परहु = परंतु ! जनि = संसार मे ! गहीरे = धीर गंभीर ! मति = बुद्धी ! हाथहु = अपनी ! खोबहु = खो देना !
प्रग्या बोध :
परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे परीपक्वाता और अपरीपक्वाता की बात करते हुवे कहते है मनुष्य धीरगंभीरता से न केवल सोचना चाहिये , बात भी समझदारी से करना चाहिये ! उथले लोग कुछ भी बोल देते है और ओछी हरकत करते है और खुद की हसी कर लेते है ! इससे मतिहीनता झलकती है !
कबीर साहेब यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म को बुद्धीहीनो का धर्म मानते है अधर्म और विकृती मानते है ऐसा धर्म मानने वाले मूर्ख ही होंगे !
धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस
दौलतराम
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ
No comments:
Post a Comment