Friday, 4 April 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 1 : 21

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 1 : 21

कहरा : 1 : 21

उथले रहहु परहु जनि गहिरे , मति हाथहु की खोबहु हो ! 

शब्द अर्थ : 

उथले = अपरिपक्व ! रहहु = रहना ! परहु = परंतु ! जनि = संसार मे ! गहीरे = धीर गंभीर ! मति = बुद्धी ! हाथहु = अपनी ! खोबहु = खो देना ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे परीपक्वाता और अपरीपक्वाता की बात करते हुवे कहते है मनुष्य धीरगंभीरता से न केवल सोचना चाहिये , बात भी समझदारी से करना चाहिये ! उथले लोग कुछ भी बोल देते है और ओछी हरकत करते है और खुद की हसी कर लेते है ! इससे मतिहीनता झलकती है ! 

कबीर साहेब यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म को बुद्धीहीनो का धर्म मानते है अधर्म और विकृती मानते है ऐसा धर्म मानने वाले मूर्ख ही होंगे ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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