Wednesday, 16 April 2025

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Kahara : 2 : 2

पवित्र बीजक : प्रग्या बोध : कहरा : 2 : 2

कहरा : 2 : 2

अटपट कुम्हरा करै कुमरैया , चमरा गाँव न बाँचे हो ! 

शब्द अर्थ : 

अटपट = मिट्टी को रोंद कर , पटक पटक कर एक और मुलायम करना ! कुम्हरा = कुम्हहार ! करै = करना ! कुमरैया = मिट्टी से घडे , बर्तन बनाना ! चमरा = मोची , चमडे का काम करने वाला चमार ! गाँव न बाँचे हो = गाँव का काम ना चले ! 

प्रग्या बोध : 

परमात्मा कबीर कहरा के इस पद मे विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणनोने मुलभारतिय हिन्दू धर्मी विविध वेवसाय के कारागीरो को जाती वेवस्था मे बन्दिस्त कर उन्हे शुद्र , अस्पृष्य , निच बताया और छुवाछुत भेदभाव ऊचनीच , गैरबराबर कर शोषण वाले समाज वेवस्था को जन्म दिया ! वेद का वर्णवाद और मनु का जातीवाद ने मुलभारतिय समतावादी समाज बर्बाद कर दिया ! 

कुम्हार और मोची का काम वेवसाय के बैगर क्या कोई देश गाँव कसबा काम कर सकता है और खुशहाल हो सकता है ? पुछते है धर्मात्मा कबीर ! ब्राह्मण न हो तब भी देश और समाज का काम चल सकता है पर कारागीर के शिवाय समाज चलना ना मुमकीन है ! 

धर्मविक्रमादित्य कबीरसत्व परमहंस 
दौलतराम 
जगतगुरू नरसिंह मुलभारती 
मुलभारतिय हिन्दूधर्म विश्वपीठ 
कल्याण , अखण्डहिन्दुस्तान , शिवशृष्टी

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