#रमैनी : ४४
कबहु न भयउ संग औ साथा * ऐसेहि जन्म गमायउ आछा
बहुरि न पैहो ऐसे थाना * साधु संगति तुम नहिं पहिचाना
अब तोर होइहैं नरक महैं बासा * निसीदिन बसेउ लबार के पासा
#साखी :
जात सबन कह्न देखिया, कहहीं कबीर पुकार /
चेतवा होय तो चेति ले, नहिं तो दिवस परतु हैं धार // ४४ //
#शब्द_अर्थ :
ऐसेहि = निरर्थक , व्यर्थ ! आछा = अच्छा , उत्तम ! थाना = स्थान, जीवन ! लबार = झूठा , मक्कार , लंपट ! जात = नीचे गिरे ! धार = डाका , लूट !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के अधर्मी पांडे पुजारी की संगत बुरी है उसे छोड़ो नही तो ये दुर्लभ मनुष जीवन बेकार , व्यर्थ जायेगा ! ये पंडे पुजारी वैदिक नर्क के वासी है जहां वर्ण जाति उचनीच भेदाभेद अस्पृष्यता विषमता , अंधश्रद्धा , कुरिति , गिरे और नीच लंपट भगवान की पूजा होमहवन गाय घोडे की बली सोमरस और मेनका रंभा उर्वशी आदि वेश्या की भरमार है ! यह धर्म नही विकृति और अधर्म है यहां दिन के उजाले में आप के मानव जीवन कि सुख संपत्ति ये वैदिक ब्राह्मण धर्म के नाम पर लूटते है !
कबीर साहेब कहते है भाई मैं आप को इस प्रकार खुले में दिन दहाड़े इन डाकू द्वारा लूटते ठगते नही देख सकता इस लिए मैं तुम्हे तुम्हारा सनातन पुरातन समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित सत्य मूलधर्म आदीधर्म मूलभारतीय हिन्दूधर्म की याद दिलाता हूं ! आवो लौट चलो अपने मूलधर्म में अपने घर में यहां सुख शांति है वहां विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म में केवल नर्क की खाई है !
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