#रमैनी : ५८
तैं सुत मान हमारी सेवा * तो कहैं राज देऊं हो देवा
अगम दृगम गढ़ देऊं छुड़ाई * औरों बात सुनहु कछु आई
उतपति परलय देऊँ देखाईं * करहु राज सुख बिलसो जाई
एकौ बार न होइहैं बाँको * बहुरि जन्म न होईहैं ताको
जाय पाप सुख होईहैं घना * निश्चय बचन कबीर के मना
#साखी :
साधु सन्त तेई जना, जिन्ह मानल बचन हमार /
आदि अन्त उत्पति प्रलय, देखहु दृष्टि पसार // ५८ //
#शब्द_अर्थ :
सुत = बच्चा, शिष्य ! राज = स्वरूपस्थिति ! अगम = अगम्य, न समज में आने वाला ! दृगम = दृष्टि में आने वाला ! गढ़ = किला ! उतपति परलय = निर्माण विनाश ! आदि अन्त = जन्म मरण !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है कोई बच्चा , ना समज शिष्य , सामान्य व्यक्ति हमारे पास आता है तो सेवा के बदले हमसे राजपाट धनसंपत्ति कैसे मिले इसके उपाय पूछता है , तंत्र मंत्र अनुष्ठान क्रिया आदि मांगता है , पर हम यह सब नही दे सकते क्यू की हम धार्मिकता देनेकी बात करते है , शील सदाचार की बात करते है ! जन्म मरण के फेरे से बाहर आने की मुक्ति की बात करते है जहा दुख ना हो !
कबीर साहेब कहते हैं विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के मूर्ति पूजा, ढकोसले , अंधश्रद्धा , अधर्म और विकृति से बाहर निकलो तभी तुम्हे मेरे बताए मुक्ति का धर्म मार्ग समझ में आयेगा !
कबीर साहेब कहते है मैं बार बार लोगोंको साधु संतो को शिष्य और सामान्य लोगोंको समझाता हूं भाई बार बार मोह माया में फस कर क्यू बार बार जन्म मृत्यु के फेरे में फसते हो ? आवो मैं बताता हु उस मुक्ति के मार्ग पर चलो , धर्म की राह पर चलो, मूलभारतीय हिंदू धर्म की राह पर चलो , वही अंतिम सुख और मुक्ति का मार्ग है और मैं उसे ही सच्चा साधु संत मानता हूं जो सनातन सत्य मूलभारतीय हिंदू धर्म की राह पर चल निर्वाण प्राप्त करता है ! मेरा धर्म मार्ग पाप से मुक्ति और सुख के लिए है ! इस मार्ग पर चलकर ही तुम्हे मुक्ति मिलेगी यह मेरा दृढ़ विश्वास , निश्चय और दावा है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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