#रमैनी : ६३
नाना रूप वर्ण एक किन्हा * चारि वर्ण वै काहु न चीन्हा
नस्ट गये कर्ता नहिं चीन्हा * नष्ट गये औरहि मन दीन्हा
नष्ट गये जिन्ह बेद बखाना * बेद पढ़े पर भेद न जाना
बिमलख को नैन नहिं सूझा * भया अयान तब किछउ न बूझा
#साखी :
नाना नाच नचाय के, नाचे नट के भेष /
घट घट है अविनाशी, सुनहु तकी तुम शेख // ६३ //
#शब्द_अर्थ :
नाना रूप = अलग अलग कार्य , पहचान ! वर्ण = विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के धर्मग्रंथ वेद और मनुस्मृति ! एक = मानव ! वै = वे वैदिक ब्राह्मण ! कर्ता = मनुष्य ! औरहि = दूसरे ! बखाना = विधान , व्याख्या , टीका ! बिमलख = दिव्यदृष्टि ! अयान = अज्ञान ! अविनाशी = अमर चेतन राम ! शेख = शेखतकी , सूफी संत जो सिकन्दर लोदी के गुरु थे !
#प्रज्ञा_बोध :
विदेशी वैदिक जो वेद को और मनुस्मृति को उनके धर्म का धर्मग्रंथ और कानून मानते है वे दर असल भारतीय नही , हिंदुस्तानी नही , हिन्दू नही है ! हिन्दू हिंदुस्तान के दुश्मन है , देश के दुश्मन है ! जब वो यूरेशिया से ईरान के रास्ते आये उनका मकसद था इस सुजलाम सुफलाम भूमि पर राज करना जैसा की विदेशी ब्रिटिश लोगोका रहा है ! दोनो ने वही जाना माना सत्ता सूत्र अपनाया बाटो और राज करो !
सिंधू हिन्दू संस्कृति से चले आ रहे समतावादी मानवतावादी समाजवादी वैज्ञानिक भाईचारावादी , शील सदाचार वादी मूलभारतीय सनातन पुरातन आदिम आदिवासी नाग वंशी लोगोको पहले अपने को मूलभारतीय को दो वर्ण में बाटा पहला और सर्व श्रेष्ठ खुद को ब्राह्मण और ब्रह्मा के वंशज बताया , ब्रह्मा को भगवान ईश्वर देव बताया और वेद को अपौरुषेय यानी भगवान निर्मित !
मूलभारतीय हिन्दूधर्म और सिंधूहिन्दू नाग वंशी सभ्य नाग्रिक सभ्यता नागरिक भाषा को अमान्य कर देवनागरी नाम दिया और प्राकृत मे अनावश्यक संस्कार कर एक ब्रह्मिनोकी सिक्रेट कोड लैंग्वेज संस्कृत भाषा बना दिया ताकि उनकी आपस की बात यहा के आदिवासी मूलभारतीय हिन्दू जान न सके !
जो यूरेशियन ब्राह्मण नही उन सभी लोगोंको अब्राह्मण , गैर ब्राह्मण घोषित कर उनके राजकूल , व्यापारी वर्ग को ब्राह्मण गोरी कन्याये देकर सोमरस पिलाकर और जनेऊ जैसा गाय की अतडी , चमड़ी को पहना कर दूसरे तीसरे वर्ण क्षत्रिय वैश्य बनाए गए और अपनी कूटनीति बाटो और राज करो में सफल हुवे !
मूलभारतीय हिन्दूधर्म के अमृत वृक्ष पर विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का वर्ण जाति अस्पृश्यता विषमता भेदभाव उचनीच , आदि का विषवृक्ष की डार प्रत्यारोपित कर दी गई जी से हजारों जाति के और विषमता अमानवता के फल आये जिसने इस देश की एकता और अखंडता खंड खंड कर दी !
मूलभारतीय हिन्दूधर्म की समता की जड़े यहां की मिट्टी में बहुत गहरी गई है वो समता का विचार कीसी न किसी तरीके से धरती पर लाते रहे है जैनधर्म , बुद्धधर्म , सिखधर्म उसी समता रस की देन है जिसने विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म का जाती वर्ण विषमता वाद अस्वीकार किया और मूलभारतीय हिन्दूधर्मी समाज विविध पंथ मार्ग से अपना वैदिक ब्राह्मणधर्म से अलगपन दिखाता रहा चाहे वो वारकरी , शैवी , लिंगायत जैसे कितने ही संप्रदाय है कुल मिलाकर देश की पूर्ण मूलभारतीय गैर ब्राह्मण आबादी आज विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म को नही मानता है जब की उनकी नीति बाटो और राज करो आज भी काम कर रही है !
कबीर साहेब यही बताना चाहते है मूलभारतीय हिन्दूधर्म और विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म अलग अलग है ! यही बात वो शेखतकी , मुस्लिम शासक सिकंदर लोदी के गुरु को बताना चाहते है हमारा मूलतत्व समता भाईचारा मानवता शील सदाचार ही है और हमे ना ब्राह्मणधर्म की जरूरत है नाही तुर्की मुस्लिमधर्म की !
कबीर साहेब ने जमीनी मूलभारतीय हिन्दूधर्म को फिर से पल्लवित किया ! उसे धर्मवाणी पवित्र बीजक दी जो मूलभारतीय हिन्दूधर्म का एकमात्र धर्मग्रंथ है और कानून है हिन्दू कोड बिल के कायदे !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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