#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ६५ : परख करो विवेक करो !
#रमैनी : ६५
अपने गुण को अवगुण कहहू * इहै अभाग जो तुम न विचारहू
तूं जियरा बहुतै दुख पावा * जल बिनु मीन कौन संच पावा
चात्रुक जलहल आसै पासा * स्वांग धरै भवसागर की आसा
चातुक जलहल भरै जो पासा * मेघ न बरसे चले उदासा
राम नाम इहै निजू सारा * औरो झूठ सकल संसारा
हरि उतंग तुम जाति पतंगा * यम घर कियहु जीव को संगा
किंचित है सपने निधि पाई * हिय न समाय कहां धरौ छिपाई
हिय न समाय छोरि नहिं पारा * झूठा लोभ किछउ न विचारा
सुमृति कीन्ह आपु नहिं माना * तरुवर तर छर छार हो जाना
जिव दुर्मति डोले संसारा * ते नहिं सूझे वार न पारा
#साखी :
अंध भया सब डोलै, कोई न करै विचार /
कहा हमार मानै नहीं, कैसे छुटै भ्रम जार // ६५ //
#शब्द_अर्थ :
अपने गुण = मानवीय विचार शक्ति ! संच = सुख ! चातुक = चातक पक्षी ! जलहल = जलधर , समुद्र, जलाशय ! स्वांग = नाना वेश , नकल! उतंग = उतुंग , ऊंच ! यम = वासना ! निधि = खजाना ! किछउ = थोड़ा ! वार पार = समाधान ! भ्रमजार = भ्रमजाल !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाइयों हम मानव है हम में कितने ही मानवीय गुण है जो अन्य प्राणी में नही उसमे एक प्रमुख है मानव विचार शक्ति ! इस विचार शक्ति , विवेक करने की शक्ति , निरक्षीर , परक की शक्ति यह अदभुत मानवीय गुण है इस गुण को कुछ लोग अवगुण कहते है विचार मत करो कहते है जो विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के वेद और मनुस्मृति में बताया उस विकृत अधर्म को मानो कहते है ! जाती वर्ण छुवाछुत , अस्पृश्यता, विषमता कैसे धर्म हो सकता है ? ये अधर्म है इसपर विवेक करो विचार करो परख करो कबीर साहेब कहते है !
जिस प्रकार चातक पक्षी उसके आस पास के जलाशय में विपुल पाणी होने बाद भी स्वाति नक्षत्र के समय आकाश से पाणी बरसे की आज लगाकर आकाश के तरफ देखते रहता है और पाणी ना बरसे तो प्यासा ही रहता है क्यू की वो विवेक नही करता पर मानव विवेक कर सकता है , कबीर साहेब उस विवेक बुद्धि पर मनुस्मृति , वेद और सभी विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के रीती रिवाज , पूजा अर्चना , देवी देवता उनके चरित्र आदि परखो यह बताते है !
कबीर साहेब कहते है धन दौलत को बहुतसारे लोग अपने जीवन का लक्ष समझते है और नश्वर संसार , शरीर में निरर्थक मोह माया में जीते हुवे विवेक बुद्धि खो देते है और अंतता जीवन की सार्थकता खो देते है !
कबीर साहेब कहते है आकाश के देव , पत्थर के मूर्ति में देव नही वो चेतन राम विवेक ही है जो हम तुम में मानव में है ! उस स्वयम में विद्यामान चेतन राम की दी हुवी प्रज्ञा बोध की शक्ति पहचानो ! ब्राह्मण अधर्म झूठ छोड़ो नही तो तुम्हारा मानव जीवन तुम्हारे ही दुर्मती से निश्चित है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभाराती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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