#रमैनी : ५६
दिन दिन जरै जलनी के पाऊ * गाड़े जाय न उमगे काहू
कन्धन देइ मस्खरी करई * कहुधौं कौन भांति निस्तरई
अकर्म करै औ कर्म को धावै *पढि गुनि बेद जगत समुझावै
छूँछे परैं अकारथ जाई * कहहीं कबीर चित चेतहु भाई
#शब्द_अर्थ :
जलनी = जलाने वाली ! पाऊ = अधीनता ! उमगे = उबरना ! कंधन देई = शव को कांधा देने वाले ! धौं = भला ! अकर्म = बुरे कर्म ! कर्म = अच्छे कर्म ! छूंछे = व्यर्थ !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो इस संसार में जीवन एक बुलबुले की तरह क्षणिक है तब भी हम सब आसक्ति मोह माया में जीते है ये नही जानते समशान में रोज कितने लोगोंके शव जलते है इन्हे देख कर भी क्षणभंगुरता का बोध नहीं होता ! कितने ही लोग है शव को कांधा देते हुवे ले जाते है और मन ही मन जल्दी निपट जाये ऐसा सोचते है !
कबीर साहेब कहते भाई जागो बुरे कर्म से बचो अच्छे कर्म करो ! कुछ खुद को पढ़े लिखे वेद के जानकार अपने को ज्ञानी पंडित तो कहते है और संसार की क्षणभंगुरता की बात तो करते है और मौत पर अपना धंदा भी चलाते है न जाने कीतने अवडंबर , अंधश्रद्धा उन्होंने फैला रखी है मैं उन वैदिक ब्राह्मीनोसे कहता हूं अधर्म फैलाना छोड़ो ! तुम्हारा भी जीवन तुम व्यर्थ गवा रहे हो !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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