#रमैनी : ६६
सोई हित बन्धु मोहि भावै * जात कुमारग मारग लावै
सो सयान मारग रहि जाई * करै खोज कबहूं न भुलाई
सो झूठा जो सुत को तजई * गुरु की दया राम ते भजई
किंचित है एक तेज भुलाना * धन सुत देखि भया अभिमाना
#साखी :
दिया न खता ना किया पयाना, मंदिर भया उजार /
मरि गये सो मरि गये, बाँचे बांचनहार // ६६ //
#शब्द_अर्थ :
सयान = श्रेष्ठ , समझदार! सुत = पुत्र , ज्ञान ! ते = वे , वही ! तेज = माया की चमक ! चमक = दमक ! मंदिर = शरीर , घर ! उजार = भग्न , सुनसान , प्राण रहित ! गुरु की दया = गुरु ज्ञान! राम = चेतन राम , परमतत्व ! सयान मार्ग = मूलभारतीय हिन्दूधर्म , सत्यधर्म!
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाई वही लोग और साधु मुझे अच्छे लगते है जो कुमार्ग अधर्म विकृत वैदिक ब्राह्मणधर्म पर चल रहे लोगोंको सही मार्ग मूलभारतीय हिन्दूधर्म , सत्यधर्म के मार्ग पर फिर से वापस लाते है उसके लिऐ प्रयास करते है और सत्य हिन्दू धर्म का जो मार्ग हम बताते है उसे भूलते नही !
हमारा मार्ग शील सदाचार भाईचारा समता शांति अहिंसा आदि मानवीय मूल्यों पर आधारित है यहां जातीवाद वर्णवाद अस्पृश्यता विषमता आदि अमानवीय विचार और वैदिक ब्रह्मण अधर्म के ढकोसले को कोई स्थान नहीं ! विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म और मूलभारतीय हिन्दूधर्म अलग अलग ये गुरु की बात को समझ गए वही ज्ञानी हो गए ।
कबीर साहेब कहते हैं माह माया के दिखावे में चमक धमक को ना भूलो उसके फंदे में ना पड़ो यह शरीर क्षणभंगुर है न जाने कब प्राण उड़ जाए और ये शरीर , ये महल जिस के मोह में तुम अटके हो निस्तेज भग्न हो जाए उसके पहले गुरू ने बताया मूलभारतीय हिन्दूधर्म के मार्ग पर चलो !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नर्सिंग_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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