#रमैनी : ४९
दर की बात कहो दरबेसा * बादशाह है कौने भेषा
कहां कुच कहां करे मुकामा * मैं तोहि पूछौ मुसलमाना
लाल जर्द की नाना बाना * कौन सुरति को करो सलमा
काजी काज करहुं तुम कैसा * घर घर जबह करावहु भैसा
बकरी मुरगी किन्ह फुरमाया * किसके कहे तुम छुरी चलाया
दर्द न जानहु पीर कहावहु * बैता पढ़ि पढ़ि जग भरमावहु
कहहिं कबीर एक सैय्यद बोहावै * आप सरीखा जग कबुलावै
#साखी :
दिन को रहत हैं रोजा, राति हनत हैं गाय /
यह खून यह बंदगी, क्योंकर खुशी खुदाय // ४९ //
#शब्द_अर्थ :
दर = द्वार , ठिकान ! दरबेसा = दरवेस , फकीर , सूफी संत ! बादशाह = खुदा , अल्ला ! जर्द = लाल ! नाना = अनेक प्रकार ! बाना = भेष ! सुरति = सूरत ! शक्ल ! काजी = इस्लामिक न्यायधीश ! जबह = गला काटना ! फुरमाया = आज्ञा ! पीर = गुरु ! बैता = कविता , शेर ! बोहवैं = मदत की पुकार ! खुदाय = खुदा ! रोजा = मुस्लिम का उपवास !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो सुनो अल्ला ईश्वर का कोई भेष रूप रंग नही ना उसका कोई ठिकाना पत्ता ! इसलिए उसके नाम से उपवास कर फिर उसके नाम से ही प्राणी हत्या करना गलत है ! पीर उसी को कहते है जो दूसरे की पीड़ा , दुख जानता हो ! हत्या कर फिर अल्लाह खुदा से सुख मांगना नाही न्यायसंगत नाही है नाही वो धर्म है !
#कबीरसत्व_परमहंस_दौलतराम
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