#रमैनी : ५०
कहइत मोहिं भयल युगचारी * समुझत नहिं मोर सुत नारी
बंसहि आगि लागि बंसहि जरिया * भरम भूल ना धंधे परियां
हस्ति के फंदे हस्ती रहई *मृगा के फंदे मृगा रहई
लोहे लोह जस काटु सयाना * त्रिया के तत्व त्रिया पहिचाना
#साखी :
नारि रच्नते पुरुषा, पुरुष रचांते नार /
पुरुषहि पुरूषा जो रचै, ते बिरले संसार // ५० //
#शब्द_अर्थ :
बंस = बांस , बांबू ! सयाना = समझदार , होशियार ! तत्व = स्वभाव ! रचन्ते = रचते , रुचि कारक , प्रेम ! रचै = प्रेम करे ! बिरले = अलग !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं लोग संसारी है जैसे मैं एक संसारी हुं मेरी पत्नी लोई भी संसार में व्यस्त और मेरे बच्चे कमल और कमला भी मस्त है ! पर हर कोई मैं और मेरा में ही उलझे है जब की मैं बार बार लगातार ये समझा रहा हूं मैं और मेरा पण व्यर्थ है ! पर मेरी ये सिख मेरी पत्नी और बच्चोंको भी नही भाती !
नारी का स्वभाव नारी ही अच्छी तरह जानती है , जैसे बांस के घर्षण से अग्नि उत्पन्न होती है और बांस को जला देती है वैसे ही गुलामी का आदी सिखाया गया हाथी दूसरे हाथी को अपने साथ गुलामी में ले आता है ! लोगो लोहे से ही लोहा काटते है वैसे ही मैं में , मेरा पण माया मोह अहंकार भर देता है ओर मैं अर्थात उस मुक्त पुरुषोत्तम चेतन राम के अस्तित्व को इच्छा तृष्णा का गुलाम कर देता है यही बात मेरी स्त्री , बच्चे और समाज को युगों से समझाता आ रहा हूं !
कबीर साहेब कहते है वे लोग बहुत कम है जो मेरा मूलभारतीय हिन्दूधर्म का विचार ठीक से समझते है ! संसार में हर कोई स्त्री पुरुष अपनो से प्यार करते है पर जो लोग मोह माया के बन्धन से मुक्त होकर सब के सुख शांति की कामना से जीते है ऐसा मैं अनोखा संसार चाहता हूं जहा सब के लिऐ प्रेम दया समता भाईचारा मानवता शील सदाचार हो !
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