#रमैनी : ५१
जाकर नाम अकहुवा रे भाई * ताकर काह रमैनी गाई
कहैं तात्पर्य एक ऐसा * जस पंथी बोहित चढ़ी वैसा
हैं कछु रहनि गहनि की बाता * बैठा र हैं
चला पुनि जाता
रहैं बदन नहिं स्वांग सुभाऊ * मन अस्थिर नहिं बोलै काहु
#साखी :
तन राता मन जात है, मन राता तन जाय /
तन मन एकै होय रहे, तब हंस कबीर कहाय // ५१ //
#शब्द_अर्थ :
रमैनी = प्रशंश्या , प्रार्थना, चेतन राम में रमने वाला , उसकी महत्ता ! अकहुवा = न कहा हुवा , अन कहा ! तात्पर्य = आशय , मतलब! बोहीत = नाव , जहाज , पानी का वाहन ! काहू = क्यू कर ! राता = आसक्त ! एकै = एकाग्रता ! हंस = विवेकी , ज्ञानी !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो जिसके बारेमे तुम कुछ नही जानते उसकी महत्ता तुम क्या बतावोगे ? राम की महत्ता तो वही जान सकता है जो चेतन राम में रमता हो ! यही रमैनी है , राम में रमने वाले ही राम को जानते है ! जो नाव पर बैठ कर नदी या जहाज पर बैठ कर जो समुद्र पार करता है वही उस समय की स्थिति समज सकता है !
कबीर साहेब कहते हैं भाईयो मन को एकाग्र कर जब राम के दर्शन होते है वही स्वदर्शन है ! स्वयं को जानो , अंदर झाको अंतर्मन का मैल बाहर करो ! शरीर के ऊपर चंदन का लेप , माथे पर तिलक , चोटी , जनेऊ , सोवाला आदी उपरि अवडंबर से दिखावे से राम नही मिलता ! राम की झूठी स्तुति और स्तोत्र , प्रार्थना आदि से भी राम प्रसन्न नही होता !
कबीर साहेब कहते है ज्ञानी बनो हंस की तरह विवेकी बनो सार असार को पहचानो , अंतरबाह्य शुद्ध बनो , पाप , अधर्म छोड़ो जो विषमता शोषण वर्ण जातिवाद अस्पृश्यता आदि अमानवीय विचार है ! सत्य हिन्दूधर्म समता मानवता शील सदाचार भाईचारा है उसका पालन करो ! तन मन से विशुद्ध मूलभारतीय हिन्दूधर्मी बनो !
No comments:
Post a Comment