#रमैनी : ६१
धर्म कथा जो कहतहि रहई * लाबरि उठि जो प्रातहि कहई
लाबरि बिहाने लाबरि स्नझा * एक लाबरि बसे वृदया मंझा
रामहु केर मर्म नहिं जाना * ले मति ठानिन बेद पुराना
वेदहु केर कहल नहिं करई * जरतइ रहे सुस्त नहिं परई
#साखी :
गुणातीत के गावते, आपुहि गये गवाय /
माटी का तन माटी मिलिगौ, पवनहि पवन समाय // ६१ //
#शब्द_अर्थ :
धर्म कथा = भागवत , गीता पाठ , सत्य नारायण कथा ! लाबरि = झूठी बात ! सुस्त = शांत ! गुणातीत = गुणों से परे , निर्गुण ! गवाय = खोया , गाना ! रामहु= चेतन राम ! बेद पुराना = वेद और पुराण !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो विदेशी यूरेशियन वैदिक ब्राह्मणधर्म के पांडे पंडित सवेरे उठाते ही झूठ बोलना शुरू करते है और दिनभर झूठ और झूठ बोलते रहते उनकी शाम होती है और दिन ढलता है पर उनका झूठ और झूठ बोलने की आदत कभी कम नहीं होती ! झूठ उनके वृदय में पूरी तरह बस चुका है ! वे कभी नहीं सुधरेंगे !
वैदिक ब्राह्मण वेद और पुराण से झूठी कथाएं धर्म कथा करके सुनते रहते है जैसे असत्य नारायण की कथा और मोटी दक्षिणा , माल लेकर झूठ के सहारे अपना और अपने कुटुम्ब का लालन पालन करते है ! उनका अधर्म यही उनका धर्म है , विकृत वेद और भेद वर्ण और जाति वेवस्था , उचनीच भेदाभेद , अस्पृष्यता और जनेऊ चोटी का दिखावा , वैदिक असभ्य मंत्रो की निरर्थक बड़बड़ यही उनका जीवन धर्म है !
ब्रह्मिनोका खुद उनके वेदा पर भरोसा नहीं ना ऊनके वैदिक देवी देवता ब्रह्मा इंद्र , रुद्र , गायत्री आदि पर भरोसा है ना ऊनके देवी देवता उनके मंत्रो के आवाहन पर अब खुश होकर वेद के होम हवन अग्नि से परगट हो उन्हे कोई वर इच्छित फल देते है ! वे इधर उधर की चोरी कर मानगढ़न कथा बनाते है और दान दक्षिणा समिधा के लिऐ दिनरात झूठी कथाएं करते रहते है !
कबीर साहेब कहते है ब्रह्मिनो का जीवन व्यर्थ गया ! वे केवल पाप की गठरी लदे गधे की जिंदगी जी रहे है !
कबीर साहेब कहते है वे मूलभारतीय धर्म संस्कृति नही जानते ना हमारे चेतन निर्गुण राम को जानते है , ना उनका विश्वास शील सदाचार में है वे अभी भी विदेशी व्युरेशियां से असभ्य लोग है जो असंगत वेद के अर्थहीन मंत्र पढ़कर अपना जीवन गवा रहे है !
#धर्मविक्रमादित्य_कबीरसत्व_परमहंस
#दौलतराम
#जगतगुरु_नरसिंह_मूलभारती
#मूलभारतीय_हिन्दूधर्म_विश्वपीठ
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