Wednesday, 7 August 2024

Pavitra Bijak : Pragya Bodh : Ramaini : 47

#पवित्र_बीजक : #प्रज्ञा_बोध : #रमैनी : ४७

#रमैनी : ४७

जरासिन्धु शिशुपाल संधारा * सहस्त्रार्जुन छल सो मारा 
बड़ छल रावण सो गौ बीती * लंका रहल कंचन की भीती 
दुर्योधन अभिमाने गयऊ * पाण्डव केर मर्म नहिं पयऊ 
माया के डिम्भ गयल सब राजा * उत्तम मध्यम बाजन बाजा 
छौ चकवे बिती धरणी समाना * एकौ जीव प्रतीत न आना 
कहां लौं कहों अचेतहि गयऊ * चेत अचेत झगरा एक भयऊ 

#साखी : 

ई माया जग मोहिनी, मोहिन सब जग झारि /
हरिचन्द सत्त के कारणन, घर घर सोग बिकाय // ४७ //

#शब्द_अर्थ : 

संधारा = संहार किया गया ! कंचन = सोना ! भीती = दीवार , रहती ! डिंम्भ = दंभ , अहंकार ! बाजा = संगीत का एक साज ! छौ चकवे = छह चक्रवर्ती राजे ! बिति = हुवे , गए , पुराने ! चेत अचेत = ज्ञानी अज्ञानी ! झारि = मिटाना ! सत्त = सत्य ! सोग = फिरता !

#प्रज्ञा_बोध : 

धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो पहले भी कितने ही दिग्गज राजा बलशाली लोग हुवे है जैसे जरासिंधु , शिशुपाल , सहस्रअर्जुन, रावण, दुर्योधन आदि पर सब किसी न किसी मोह माया अहंकार के कारण मारे गए और दुष्कीर्ति को प्राप्त हुवे ! पाण्डव के साथ खुद कृष्ण थे जो उन्हे क्या गलत क्या सही समय समय पर बताते रहे वो सदगुरु की भूमिका में थे इस लिए पांडव महाभारत का धर्मयुद्ध जीत पाए ! वही साज अच्छा और मधुर संगीत देता है जो मध्य में रहता है जो अति ताना नही जाता या अति ढीला नही होता ! मध्यम मार्ग सब से अच्छा है ! 

कबीर साहेब कहते है क्या ज्ञानी क्या अज्ञानी , क्या सम्राट क्या चक्रवर्ती सब मोह माया के चक्रव्यूह में उलझकर रह गए ! इस मोह माया अहंकार से कैसे बचे यही ज्ञान होना चाहिए नही तो सत्य के लिए जाने वाले राजा हरिश्चन्द की तरह काशी के गली में कवड़ी मोल घर घर बिकते फिरोगे और कुछ प्राप्त नही होगा क्यू की हर बात की अति हानिकारक होती है !

कबीर साहेब विदेशी वैदिक ब्राह्मणधर्म के अति अमानवीय विचार और मूलभारतीय लोगोंको अति अंधविश्वास को हानिकारक बताते हुवे मूलभारतीय लोगोंको सावधान करते हुवे मूलभारतीय हिन्दूधर्म के मध्यम मार्ग पर चलने की सिख देते है ! 

#दौलतराम

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