#रमैनी : ४१
अंबु कि राशि समुद्र की खाई * रवि शशि कोटि तैतीसों भाई
भंवर जाल में आसन मांडा * चाहत सुख दुख संग न छाड़ा
दुख को मर्म न काहू पाया * बहुत भ्रांति के जग भरमाया
आपूहि बाउर आपु सयाना * वृदया बसे तेहि राम न जाना
#साखी :
तेही हरी तेहि ठाकुर, तेही हरी के दास /
ना यम भया न जामिनि, भामिनि चली निरास // ४१ //
#शब्द_अर्थ :
अम्बु की राशि = विपुल पानी ! भंवर = पानी का चक्र , माया का चक्र ! मांडा = जमाया , सजाया ! बाउर = पागल ! यम = नियम , संयम ! जामिनि = जामिन , जमानत लेने वाला ! भामिनी = पत्नी , मालकिन
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते है भाईयो इस संसार में पानी के अथाह समुद्र है जिसमे कितने ही चक्र बवंडर उठते रहते है उसकी कोई थाह नही लगती उसी प्रकार विश्व में अगणित चन्द सूर्य तारे है और वहा नित्य नए खेल शुरू है उसका भी कोई थाह नही लगता ! वो चेतन राम , परमपिता इसी विश्व के अनंत चक्र में खुद विराजमान हैं और उसके बनाए मायाजाल , भवंडर , भवसागर में इंसान मानव सुख तो चाहता है पर माया मोह इच्छा चाहत में उलझा सुख ढूंढ रहा है जब की मोह माया का रास्ता उसे दुख की तरफ ले जाने वाला है !
कबीर साहेब कहते है मानव बहुत भ्रांति , गैरसमज में जी रहा है जैसे वो सोचता है की वो इस धरती का इकलौता मालिक बन जाए , सब संपति उसी के पास हो सब उसके गुलाम हो , वो किसी को कुछ ना समझे न उनके सुख की परवा करे तब भी उसे ही सुख मिले ! ये कैसे संभव है ? अकुशल कर्म , दुसारोंको दुख दर्द देना , विषमता शोषण , हत्या झूठ फरेब कर कोई इंसान कैसे सुख पा सकता है ?
कबीर साहेब कहते है भाई आप खुद ज्ञानी बन सकते हो या अज्ञानी रह सकते हो , धार्मिक शील सदाचारी बन सकते हो या क्रूर अत्याचारी अधमी ! आप क्या बनते हो इस पर ही आपका सुख दुख निर्भर करता है !
No comments:
Post a Comment