#रमैनी : ४८
मानिकपुर कबीर बसेरी * मद्दति सुनी शेखतकि केरी
ऊजै सुनी जौनपुर थाना * जूंसी सुनी पिरन को नामा
एकइस पीर लिखे तेहि ठामा * खातमा पढ़े पैगम्बर नामा
सुनी बोल मोहिं रहा न जाई * देखि मुकर्बा रहा भुलाई
हबी नबी नबी के कामा * जहां लौं अमल सो सबै हरामा
#साखी :
शेख अकर्दी शेख सकर्दी, मानहु बचन हमार /
आदि अन्त औ युग युग, देखहु दृष्टि पसार // ४८ //
#शब्द_अर्थ :
मानिकपुर = एक गांव! मद्दति = तारीफ ! शेखतकी = सिकंदर लोदी का गुरु ! जौनपुर = एक गांव ! जुसी = एक गांव ! पिरन = अनेक पीर ! खातमा = प्रार्थना , आदेश ! पैगंबरनामा = पैगंबर के नाम ! मुकर्बा = मकबरा , कब्र ! हबी = हबीब , आदरणीय, नबी, खुदा! नबी = अल्लाह का दूत , पैगंबर ! अमल = कार्य , धर्मकार्य , जप , नाम स्मरण ! हरामा = हराम , वर्जित ! शेख अकर्दी शेख सकर्दी = दो सूफी संत ! शेख = दरगाह का प्रमुख , महंत ! युग युग = समय समय! दृष्टि = विचार , कल्पना !
#प्रज्ञा_बोध :
धर्मात्मा कबीर कहते हैं भाईयो किसी समय मैं मनकापुर गया था वहां शेखतकी की बड़ी तारीफ सुनी जिसके दरगाह ज्यौनपुर और ज़ुसी में है ! सुना है वे लोग इक्कीस पीर के नाम और उनके कब्र है जिस पर मुल्ले उनका नाम ले कर नमाज पढ़ते है , प्रार्थना करते है ! कब्र की प्रार्थना हमे निर्थक लगती है जैसे मंदिर में वैदिक ब्राह्मणधर्म के पंडे पुजारी की मूर्ति पूजा ! मुस्लिम मूल्ला मूर्ति पूजा को हराम कहते है और बुत परस्ती कहते हुवे अधर्म कहते है और खुद मुर्दोंकी कब्र पर अल्ला के नाम प्रार्थना करते है नमाज पढ़ते है ! दोनो गलत है !
कबीर साहेब कहते है जो चेतन नही अमर अजर नही वो खुदा ईश्वर नही वो मामूली वस्तुएं है जैसे पत्थर की मूर्ति और मिट्टी की कब्र ! अल्ला ईश्वर तो वो चेतन राम है जो अजर अमर निराकार निर्गुण अविनाशी है ! मेरा मूलभारतीय हिन्दूधर्म उस अविनाशी चेतन राम को मानता है क्षणभंगुर जड़ वस्तुएं नही !
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